Tikhur | तीखुर पाउडर के 10 फायदे

Tikhur एक ऐसा पौधा है , जिसका आम जन-जीवन में बहुआयामी उपयोग है। Tikhur जिंजीबिरेसी कुल का एक औषधीय गुण वाला पौधा है। इसी तरह हल्दी भी जिंजीबिरेसी इसी कुल का ही पौधा है। दोनों के गुण और पौधे लगभग एक ही तरह होने की वजह से दोनों को एक ही कुल में रखा गया है। तो दोस्तों आज हम Tikhur के बारे में चर्चा करेंगे।

Tikhur

आयुर्वेद की बढती जानकारी और जागरूकता की वजह से बहुत सी चीजों की उपयोगिता भी बढ़ गई है। जैसे प्रकृति में पाया जाने वाला Tikhur। इसका मुख्य उपयोग आमतौर पर खाद्य पदार्थ के तौर पर ही किया जाता रहा है। Tikhur जयादातर हिमालय की पहाड़ी से लेकर बंगाल ,छत्तीगढ़ के बस्तर में और साउथ इंडिया में पाया जाता है। Tikhur एक बहु आयामी पौधा है। जिसका उपयोग बहुत प्रकार से किया जाता है। सबसे ज्यादा इसका उपयोग इसके औषधीय गुणों की वजह से किया जाता है।

What Is Tikhur : तीखुर क्या है ?

Tikhur का इंग्लिश में नाम Curcuma starch या फिर Indian Arrowroot है। इसका वानस्पतिक नाम Curcuma Angustifolia कुरकुमा अंगुस्टीफोलिया) है। यह एक कंद मूल पौधा है। इसकी जड़ को ही हम फल के रूप में उपयोग में लाते हैं। इसका पौधा लगभग डेढ़ से 2 फिट के आसपास होता है। पत्तियां 30 से 40 सेंटीमीटर लम्बी हरे रंग की नुकीली होती है।

Tikhur का पौधा तना रहित कंदमूल युक्त हल्दी के पौधे से लगभग 90 % मिलता जुलता है। Tikhur का कंद भी बिलकुल हल्दी की ही तरह पतला ,लम्बा, गठीला होता है। हल्दी के कंद और Tikhur के कंद में सबसे बड़ा और बेसिक फर्क यही होता है की Tikhur बिलकुल सफ़ेद रंग का होता है और हल्दी पीले रंग की होती है। इसका फल मूल छोटा, लम्बे गूदेदार रेशे से युक्त होता है। तीखुर के पौधे में फूल और फल जुलाई से नवम्बर तक होता है।

इसका उपयोगी भाग इसकी जड़ या प्रकंद होता है। इसकी जड़ों से लम्बे मांसल रेशे नुमा सरंचनाएं निकलती हैं। इसके कंदों का रंग हलका मटमैला होता है। इसके पीले रंग के फूल गुलाबी सहपत्रों से घिरे और इसका आकर सहपत्रों से बड़ा होता है। इसका फल अंडाकार होता है। इसे सफ़ेद हल्दी भी कहा जाता है। इसके कंदों से आने वाले कपूर की गंध की मदत से इसे आसानी से पहचाना जा सकता है।

 

तीखुर के अन्य नाम

Indian Arrowroot (Tikhur) in –

● Hindi- तीखुर, तवाखीर, अरारोट (Teekhur or Tikhur)

● Sanskrit- तवक्षीर, पयक्षीर, यवज, तालक्षीर

●English- Indian arrowroot (इण्डियन ऐरोरूट), बोम्बे ऐरोरूट (Bombay arrowroot), ईस्ट इण्डियन एरोरूट (East Indian arrowroot), कुरकुमा र्स्टाच (Curcuma starch), नैरो लीव्ड् टरमरिक (Narrow leaved turmeric)

● Oriya- पलुवा (Paluva)

● Kannada- कोवीहिट्टू (Koovehittu)

● Gujarati- तेवखरा (Tavakhara)

● Tamil- अरारूट्किलेन्गु (Ararutkilangu), कुआकिलंकू (Kuakilanku)

● Telugu- अरारूट्-गाड्डालू (Ararut-gaddalu)

● Bengali- टीक्कुर (Tikkur)

● Nepali- बारखी सारो (Baarkhe sarro)

● Marathi- तेवाखिरा (Tavakhira)

● Malayalam- कूवा (Koova), कुवा (Kuva)

● Arabic- तवक्षीर (Tavaksheer)

● Persian- तवशीर (Tavashira)

तीखुर में पाए जाने वाले पोषक तत्त्व

तीखुर पाउडर के तत्वों की रासायनिक संरचना में प्रति 100 ग्राम में
संतृप्त फैटी एसिड – 0.01 ग्राम,
वसा – 0.06 ग्राम,
प्रोटीन – 0.01 ग्राम,
कार्बोहाइड्रेड – 82.00 ग्राम,
फाईवर – 14.00 ग्राम,
सोडियम – 0.02 ग्राम मि.ग्रा.,
कैल्सियम – 0.09 ग्राम,
आयरन – 13.00 मि.ग्राम,
विटामिन ए – 3407 आईयू..
विटामिन सी – 74.00 मि.ग्राम. पाया जाता है |

तीखुर की खेती कैसे करें ?

तीखुर के लिए मिटटी एवं तापमान

Tikhur के लिए बलुई दोमट मिटटी सबसे अच्छी मानी गई है । जलवायु की बात करें तो तो Tikhur के लिए सामान्य भारतीय ताप मान सही माना गया है। लगभग 35-40 डिग्री सेंटीग्रेड का तापमान सही माना जाता है। आंशिक छायादार जगह पेTikhur तीखुर का विकास बहुत अच्छे से हो पाता है।

तीखुर की खेती के लिए खेत की तैयारी अप्रैल मई महीने में ही कर ली जाती है। चूँकि Tikhur कंद मूल वाला पौधा है। इसका फल या कंद जड़ में ही पाई जाती है तो उनके विकास के लिए मिट्टी एकदम भुरभुरी होनी चाहिए। जिसके लिए खेत की जुताई गहराई से की जाती है। खाद की बात करें तो गोबर की खाद 8 से 10 टन प्रति हेक्टेयर डालनी चाहिए।

तीखुर की रोपाई कैसे करें ?

Tikhur की रोपाई बिलकुल आसान है हम लोगो के यहाँ जैसे आलू के खेत की रोपाई की जाती है , Tikhur के लिए भी बिलकुल वही बिधि अपनाई जाती है। Tikhur की खेती नाली बिधि से करते है। एक नाली से दुसरे नाली के बीच की दूरी 30 से 4 सेंटीमीटर राखी जाती है।

जुलाई के पहले सप्ताह में अगर बुवाई की जाती है तो ये Tikhur की बुवाई के लिए सबसे अच्छा समय माना जाता है। नाली में बुवाई करते समय इस चीज का ध्यान रखा जाता है की कंद की बुवाई से अंकुरित तीखुर कंद को सभी अंकुरित भाग को बचाकर टुकड़ों में काट लेते हैं। और बुवाई के समय एक कंद से दुसरे कंद की दूरी 15 से 20 सेंटीमीटर रखी जाती है।

तीखुर सिंचाई एवं निराई गुंडाई

वैसे तो जुलाई का महीन मानसून का ही महीना रहता है लगभग बारिश होती ही रहती है पर अगर नहीं हो पाती है तो फिर आप को सिंचाई करनी ही पड़ेगी। सिंचाई के बाद हर 20 से 25 दिन में निराई गुड़ाई करके खर पतवार ,मुक्त करते रहना चाहिए।

कटाई एवं संग्रहण :

Tikhur की फसल को पकने में 8 से 9 महीने लगते हैं। अगर जुलाई में Tikhur की रोपाई हुइ है तो लगभग अप्रैल-मई तक फसल पक जाती है। फसल पक जाने पर। इनकी पत्तियां सूख जाती हैं। पत्तियां सूख जाने के बाद इसकी खुदाई कर ली जाती है। खुदाई करने के बाद बड़े कंदो को पतले छोटे कंदों से अलग कर लेते हैं। इसका उपयोग अगली बुवाई के लिए रख लिया जाता है।इन छोटे कंदो को खुदाई समय ही वहीँ फिर से रोप देते हैं। वो अगली रोपाई के समय वहीँ फिर से उग जाती हैं।

उपज :

Tikhur फसल की उपज हल्दी की तरह ही बहुत अच्छी पैदावार होती है। Tikhur प्रति हेक्टैयर लगभग 35 से 40 क्विंटल तक होता है।

Tikhur Powder : तीखुर पाउडर 

Tikhur कंदों का पाउडर बनाने के लिए सबसे पहले सभी कंदों को अच्छे से धुल लेते हैं ताकि सारी गन्दगी या मिट्टी ठीक से निकल जाये । इसके बाद तीखुर के छिलके को सावधानी से हटा लेते हैं फिर Tikhur  को छोटे छोटे टुकड़ों में काट कर ग्रैंडिंग मशीन में पीसते हैं। पीसकर तीखुर की लुगदी बना लेते हैं।

अगर आप खुद के लिए पीस रहे हो तो छोटे ग्रैंडर का उपयोग कर सकते हो लेकिन अगर आप व्यपारिक लक्ष्य से पीस रहे हो तो आप को बड़े ग्रैंडर की जरूरत पड़ेगी। जिसकी क्षमताएं कम से कम 100 से 150 kg / ऑवर की होती है। ऐसे ग्रैंडरों से बड़ी आसानी से आप ज्यादा मात्रा में तीखुर को ग्रैंड कर सकते हैं।

Tikhur Powder

बानी हुई लुगदी को एक बड़े कंटेनर या ड्रम में इकठ्ठा कर के। इसमें से थोड़ा थोड़ा निकाल के सूती कपडे में लेके छानते है। सूती कपडे में छानते हुए पोटली की तरह बन जाती है जिसे कस कस के दबाकर छानते हैं।

छान लेने के बाद कपडे में कुछ कचरा रह जाता है ,बाकी Tikhur पानी के साथ छोटे कंटेनर या बाल्टी में नीचे बैठ जाता है। कचरे को अलग कर के कंटेनर में जहाँ तीखुर इकठ्ठा होता है। उसमे पानी मिला कर 3 से 4  घण्टे तक फिर से रख देते हैं। जिससे तीखुर नीचे बैठ जाता है। और मिट्टी भरी गन्दगी वाला पानी ऊपर रह जाता है।

ऊपर वाले पानी को फिर से सूती कपडे में छान लेते हैं जिस से बची हुई गन्दगी फिर से निकल जाती है यही प्रक्रिया 4 से 5 बार दोहराते हैं। जिसे से धीरे धीरे एकदम साफ़ तीखुर तलहटी में बैठ जाता है। फिर इसे धुप में सूखा लेते हैं।

सूख जाने के बाद फिर से इसे ग्रैंडर बारीक पीस लेते हैं अब आप का Tikhur Powder तैयार है।

सामान्य तौर पर लगभग 10 किलो Tikhur में लगभग 1 किलो तीखुर मिल जाता है।

Tikhur Benefits : तीखुर बेनिफिट्स

● गर्मियों में लू से बचने के लिए तीखुर के पाउडर का उपयोग शरबत के रूप में किया जाता है। तीखुर का शीतलन प्रभाव रोगी को लू के प्रबह्व से बचता है।

● तीखुर के पाउडर में स्टार्च के साथ आयरन सोडियम कैल्शियम विटमिन A विटमिन स भी पाया जाता है।
● तीखुर का पाउडर एक हाई न्यूट्रिशन वैल्यू वाला लड्डू, बर्फी ,हलवा खीर आदि बनाये जात्ते हैं जिनका सेवन उपवास या व्रत में          किया जाता है।

तीखुर के औषधीय गुण

● पाचनतंत्र सम्बन्धी समस्याओं को दूर करता है। पेट में होने वाली गैस से बहुत ही कारगर तरीके से निपटता है।

● एनीमिया में तीखुर बहुत कारगर सिद्ध हुवा है। एनीमिया रोग में होने वाली खून की कमी में तीखुर बहुत फायदेमंद हैं लगातार सेवन से खून की मात्रा बढ़ती है।

● अत्यधिक दस्त या उलटी होने पर तीखुर के पाउडर को दूध और चीनी मिलकर शरबत बना कर पीने से तुरंत आराम मिलता है।

● ह्रदय सम्बन्धी रोगों में ह्रदय की कार्यछमता बढ़ने में, खून को पतला कर के उचित रक्त परिसंचरण की सुनिश्चित करता है।

●कर्क रोग में महिलाओं एवं पुरषों दोनों में पेशाब सम्बन्धी समस्याओं में ,पेशाब में जलन होना , पेशाब रुक रुक कर आना आदि जटिल समस्याओं में। तीखुर के पाउडर का 2 से 3 ग्राम सुबह शाम सेवन करने से पेशाब में होने वाली समस्याओं एवं मूत्राशय में होने वाले संक्रमण से भी आराम मिलता है।

Tikhur का लगातार सेवन TB या छय रोग में भी बहुत लाभदायक है।

●डाइबिटीज़ रोग आजा कल हर तीसरा इंसान डाइबिटीज़ रोग से पीड़ित है। लेकिन तीखुर के उचित सेवन से डाइबिटीज़ को को कंट्रोल करने में मदत करता है

Tikhur के कंद का रस के लेपन से शरीर के किसी भी भाग में होने वाली सूजन को कम कर देता है।

How To Export Tikhur : तीखुर एक्सपोर्ट कैसे करे

Tikhur अपने आप में एक बहुत चमतकारीक पौधा है जिसके कंद और इसके बने हुए पाउडर की विदेशों में बहुत अधिक मांग रहती है। Tikhur अपने भारत में छत्तीसगढ़। तमिलनाडु , बंगाल हिमाँचल प्रदेश आदि जगहों में बहुत अधिक मात्रा में पैदा किये जाते हैं। इसके अलावा आप Indiamart.com की वेबसाइट पर जाकर Tikhur के अच्छे-अच्छे सप्लायर ढून्ढ सकते हैं जो आप को बहुत अच्छा रेट और आप के गोडाउन या फॅक्टरी तक Home Delivery भी दे देंगे।

How To Find Buyer For Tikhur : तीखुर के लिए बायर कैसे ढूंढे 

जैसे की आप को बताया Tikhur पाउडर की विदेशों में बहुत अधिक डिमांड रहती है। आज कल लगभग सभी बायर आप को ऑनलाइन ही मिल जाते हैं बायर ढूंढ़ने के लिए आप alibaba.com पर अपना रजिस्ट्रेशन कर के Tikhur के बायरों से सीधा संपर्क कर सकते हैं। इसके लिए एक और वेबसाइट go4business.com जहाँ आप को सारे बायर ऑनलाइन मिल जायँगे उनसे चैटिंग कर के आप अपना रेट और डील आप फाइनल कर सकते हैं।

तीखुर का कस्टम क्लीरेंस :

आप को इंडिया मार्ट की वेबसाइट से सप्लायर मिल गए और बायर भी मिल गए अब आप को एक कस्टम हाउस एजेंट को ढूंढ़ना है जो आप से कुछ मिनिमम फीस पर आप का कस्टम क्लीरेंस करवाकर आप का कार्गो जहह पर लोड करवा देंगे।

एक्सपोर्ट करने के लिए क्या क्या डॉक्यूमेंट लगेंगे और कैसे करना है अपने दुसरे ब्लॉग में पूरी जानकारी दी गई है। कृपया इसे भी पढ़ें ।

भारत में इम्पोर्ट एक्सपोर्ट कैसे करें ?

Conclusion निष्कर्ष

Tikhur  जो की एक औषधीय गुणों से भरपूर एक पौधा है। जिसके अनेकानेक फायदे हैं। आज हम इसी तीखुर के बारे में पूरी चर्चा किये। Tikhur का खाने के साथ साथ व्यापार में भी बहुत फायदे हैं। अगर हम तीखुर को निर्यात करें तो लगभग 70 % का लाभ होता है। तीखुर को निर्यात कैसे करें यह जान कारी भी दी गई। दोस्तों आप को ये जानकारी कैसे लगी ईमेल कर के जरूर बताएं बहुत बहुत धन्यवाद।

Frequently Asked Question

Question 1. तीखुर कितने रुपए किलो है?

Answer 1. तीखुर की किम्मत भारतीय बाजार में २२० से २७० के बीच में है। अलग अलग राज्यों में उपलब्धता के अनुशार कीमत कम ज्यादा रहती है। उदाहरण के लिए छत्तीशगढ़ में तीखुर की खेती अधिक मात्रा में होती है। जिसकी वजह छत्तीशगढ़ से तीखुर कीमत यह कम रहती है।

Question 2. तीखुर खाने से क्या फायदा?

Answer 2. तीखुर पूर्ण रूप से औषधीय पौधा है तीखुर के रोजाना सेवन से एनीमिय। मूत्र रोग ,डायबटीज़ ,घाव ,सर्दी, जुकाम , सूजन को कम करना ,खांसी ,पीलिया आदि रोगों में बहुत अच्छा परिणाम देता है।

Question 3 .तीखुर का दूसरा नाम क्या है?

Answer 3 .तीखुर को भारत में ही अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नामों से से जाना जाता है। जिनमे से मुख्य इस प्रकार है।

Hindi- तीखुर, तवाखीर, अरारोट (Teekhur or Tikhur)
Sanskrit- तवक्षीर, पयक्षीर, यवज, तालक्षीर
English- Indian arrowroot (इण्डियन ऐरोरूट), बोम्बे ऐरोरूट (Bombay arrowroot), ईस्ट इण्डियन एरोरूट (East Indian arrowroot), कुरकुमा र्स्टाच (Curcuma starch), नैरो लीव्ड् टरमरिक (Narrow leaved turmeric)
Oriya- पलुवा (Paluva)
Kannada- कोवीहिट्टू (Koovehittu)
Gujarati- तेवखरा (Tavakhara)
Tamil- अरारूट्किलेन्गु (Ararutkilangu), कुआकिलंकू (Kuakilanku)
Telugu- अरारूट्-गाड्डालू (Ararut-gaddalu)
Bengali- टीक्कुर (Tikkur)
Nepali- बारखी सारो (Baarkhe sarro)
Marathi- तेवाखिरा (Tavakhira)
Malayalam- कूवा (Koova), कुवा (Kuva)
Arabic- तवक्षीर (Tavaksheer)
Persian- तवशीर (Tavashira)

Question 4. अरारोट पाउडर किस चीज से बनता है? 

Answer 4. आरारोट भारत में मुख्यतः तीखुर से ही बनाया जाता है। तीखुर से स्टार्च को अलग कर के आरारोट बनाये जजते हैं। जिसे इंडियन आरारोट भी कहते है। तीखुर को अच्छे से साफ़ कर के इसके छिलके हटा के इसे ग्रैंडिंग में पीस के इससे स्टार्च अलग कर के अरारोट अलग कर लिया जाता है।

Question 5 . कॉर्नफ्लोर और अरारोट एक ही है क्या?

Answer 5. कॉर्नफ्लोर आटा कॉर्न से बनाया जाता है। जबकि आरारोट तीखुर के पौधे के कंद से स्टार्च को अलग कर के जाता है। तो हम कह सकते हैं की कॉर्नफ्लोर आटा और अरारोट दोनों अलग-अलग हैं।

 

 

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